श्रीमद भगवत गीता का सार: श्रीमद भगवत गीता के श्लोक में मनुष्य जीवन की हर समस्या का हल छिपा है जो मानसिक शांति और तनाव मुक्ति में सहायक होते हैं:

*   **श्रीमद भगवत गीता का सार:**
    *   मनुष्य जीवन की समस्याओं का हल गीता के श्लोकों में है।
    *   इसमें कर्म, धर्म, कर्मफल, जन्म, मृत्यु, सत्य, असत्य जैसे विषयों पर उत्तर हैं।
    *   श्री कृष्ण ने अर्जुन को महाभारत युद्ध के समय दिए उपदेश भगवत गीता में संकलित हैं।
*   **तनाव के समय याद रखने योग्य श्लोक:**
    *   **कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन:** फल की चिंता किए बिना कर्म पर ध्यान दें।
    *   **मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः:** सुख-दुःख अस्थायी हैं,  सहने का अभ्यास करें।
    *   **उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्:** स्वयं का उद्धार करें, पतन नही। मन  नियंत्रित करें।
    *   **सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज:** प्रभु की शरण में आएं, चिंता और भय से मुक्त हों।
    *   **योगः कर्मसु कौशलम्:** कर्मों में कुशलता और संतुलन बनाए रखें।
कानपुर 24 जुलाई 2025:
श्रीमद भगवत गीता के श्लोक में मनुष्य जीवन की हर समस्या का हल छिपा है| गीता के 18 अध्याय और 700 गीता श्लोक में कर्म, धर्म, कर्मफल, जन्म, मृत्यु, सत्य, असत्य आदि जीवन से जुड़े प्रश्नों के उत्तर मौजूद हैं|गीता श्लोक श्री कृष्ण ने अर्जुन को उस समय सुनाये जब महाभारत के युद्ध के समय अर्जुन युद्ध करने से मना करते हैं तब श्री कृष्ण अर्जुन को गीता श्लोक सुनाते हैं और कर्म व धर्म के सच्चे ज्ञान से अवगत कराते हैं| श्री कृष्ण के इन्हीं उपदेशों को “भगवत गीता” नामक ग्रंथ में संकलित किया गया है|
तनाव के समय में भगवद गीता के निम्न श्लोक अवश्य याद रखने चाहिए, जो मानसिक शांति और तनाव मुक्ति में सहायक होते हैं:
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन
"तुम्हारे अधिकार केवल कर्म पर हैं, उसके फल पर नहीं।"
यह श्लोक हमें सिखाता है कि हमें अपने कर्म पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और फल की चिंता से अनासक्त रहना चाहिए। यह मानसिक तनाव को कम करने में मदद करता है और हमें वर्तमान में जीने के लिए प्रेरित करता है.
मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः
"हे कुन्ती पुत्र, सुख और दुःख का आना-जाना लगा रहता है; इसलिए तुम इन्हें सहने का अभ्यास करो।"
इस श्लोक के माध्यम से श्री कृष्ण हमें यह सिखाते हैं कि सुख-चिंता अस्थायी हैं और इन्हें सहन करना जीवन की स्थिरता की कुंजी है.
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्
"मनुष्य को अपने आत्मा का उद्धार करना चाहिए, न कि पतन।"
यहाँ सिखाया गया है कि हम खुद का मित्र और शत्रु दोनों हो सकते हैं। अगर हम अपने मन को नियंत्रित करते हैं, तो हम अपने ही मित्र बन जाते हैं.
सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज
"सभी धर्मों को छोड़कर केवल मेरी शरण में आओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूंगा।"
यह श्लोक हमें विकट परिस्थितियों में भी प्रभु की शरण में आने की प्रेरणा देता है ताकि हम चिंता और भय से मुक्त हो सकें.
योगः कर्मसु कौशलम्
"जो अपने कर्मों में कुशलता और संतुलन बनाए रखता है, वही सच्चा योगी है।"
यह श्लोक हमें सुझाव देता है कि कर्मों में कुशलता से ही मानसिक शांति प्राप्त की जा सकती है। इसे याद रखने से हम अपने कार्यों में संतुलन बनाए रख सकते हैं.
इन श्लोकों को अपने जीवन में आत्मसात करने से न केवल मानसिक शांति प्राप्त होती है, बल्कि यह तनाव और चिंता के क्षणों में सकारात्मकता बनाए रखने में भी मदद करता है।

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