चुनाव आयोग की लोकतंत्र की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करने में भूमिका
मुख्य चुनाव आयुक्त के पद के लिए योग्य उम्मीदवारों का चयन की सिफारिश राष्ट्रपति कोमुख्य चुनाव आयुक्त भारतीय चुनाव आयोग का प्रमुख
वर्तमान मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार एवं अन्य दो निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार व एस.एस.सिंधु
संविधान र्निमाता डॉ. बी.आर. अम्बेडकर के अनुसार चुनाव मशीनरी को सरकार द्वारा नियंत्रित नहीं
संविधान अपनाने के 73 वर्षों बाद संसद द्वारा कोई कानून नहीं
चयन प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा में विपक्ष के नेता की एक समिति द्वारा
कानपुर 17 फरवरी, 2025
नई दिल्ली 17 फरवरी, 2025 नई दिल्ली मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में चयन समिति की बैठक 17 फरवरी, 2025 प्रस्तावित है । यह महत्वपूर्ण बैठक भारतीय लोकतंत्र चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करने में भूमिका निभाती है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत चुनाव आयोग देश में निश्चित, स्वतंत्र और न्यायपूर्ण चुनाव सुनिश्चित करने के लिए है। मुख्य चुनाव आयुक्त चुनाव आयोग के कार्यों को संचालित करने में सर्वोपरि होता है।भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 मुख्य चुनाव आयुक्त चयन समिति की बैठक में प्रधानमंत्री के अलावा विपक्ष के नेता और केंद्रीय कैबिनेट के एक मंत्री होते हैं। यह समिति मुख्य चुनाव आयुक्त के पद के लिए योग्य उम्मीदवारों का चयन करती है और उनकी सिफारिश राष्ट्रपति को भेजती है। यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि नियुक्ति में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनी रही। मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल सात वर्ष का होता है, जो उनके कार्य को स्थिरता प्रदान करता है।
प्रस्तावित चुनाव आयोग की बैठक भारतीय लोकतंत्र की स्वतंत्रता और निष्पक्षता व मूल सिद्धांतों को बल देती है। मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति से चुनाव प्रक्रिया में किसी भी पक्षपात या हस्तक्षेप नहीं होने संदेश जाता है। यह नियुक्ति प्रक्रिया भारतीय लोकतंत्र की मजबूती और स्वतंत्रता को मजबूत करती है।
आज की इस प्रस्तावित चुनाव आयोग की बैठक से उम्मीद कि चुनाव आयोग का नेतृत्व निष्पक्षता, पारदर्शिता और लोकतांत्रिक मूल्यों को सुनिश्चित करने में सक्षम होगा। यह नियुक्ति चुनाव आयोग के कार्यों को प्रभावित कर देश के लोकतांत्रिक भविष्य को आकार देगी।
भारतीय मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति
मुख्य चुनाव आयुक्त भारतीय चुनाव आयोग का प्रमुख होता है और भारत में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रूप से राष्ट्र और राज्य के चुनाव करवाने का उत्तरदायी होता हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति भारत का राष्ट्रपति करता है। वर्तमान में भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार है एवं अन्य दो निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार और एस.एस.सिंधु हैं
मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु, जो पहले हो, का होता है। चुनाव आयुक्त का सम्मान और वेतन भारत के सर्वोच्च न्यायलय के न्यायधीश के सामान होता है। मुख्य चुनाव आयुक्त को संसद द्वारा महाभियोग पर राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है। संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुसार, चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त और राष्ट्रपति द्वारा तय की गई एक निश्चित संख्या में चुनाव आयुक्त होते हैं। भारत का चुनाव आयोग मतदाता सूची बनाने और संसद, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के कार्यालयों के लिए चुनाव आयोजित करने के लिए जिम्मेदार है।
संविधान के अनुसार राष्ट्रपति संसद अधिनियम द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति करते हैं। पिछले दिनों संविधान सभा की बहस के दौरान यह चर्चा हुई थी कि राष्ट्रपति ये नियुक्तियाँ प्रधानमंत्री की सलाह के आधार पर करते हैं।
संविधान र्निमाता डॉ. बी.आर. अम्बेडकर के अनुसार चुनाव मशीनरी को सरकार द्वारा नियंत्रित नहीं किया जाना चाहिए। संविधान सभा के सदस्य इस बात पर सहमत हुए कि संसद को मुख्य चुनाव आयुक्त के सदस्यों की नियुक्ति के लिए विशिष्ट प्रक्रिया का निर्णय लेना चाहिए।
अनूप बरनवाल बनाम भारत संघ मामला चुनाव आयुक्त की स्वतंत्रता पर अनूप बरनवाल 2015 में एक जनहित याचिका दायर की, जिसमें सुप्रीम कोर्ट से मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों को चुनने के लिए एक निष्पक्ष प्रणाली बनाने के निर्देश देने की मांग की गई। मार्च 2023 में, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला किया कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति कैसे की जाए, संविधान अपनाने के 73 वर्षों बाद संसद द्वारा कोई कानून नहीं बनाया गया है ।
चुनाव सुधारों पर दिनेश गोस्वामी समिति (1990) और विधि आयोग जैसी समितियों ने चुनाव सुधारों पर अपनी 255वीं रिपोर्ट (2015) में सुझाव दिया था कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों का चयन प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा में विपक्ष के नेता की एक समिति द्वारा किया जाना चाहिए।
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