ठग्गू के लड्डू के आद्य जनक पंडित रामअवतार पाण्डेय
पहले पेड़ा और मट्ठा बेचा, फिर लड्डू बेचना शुरू किया।
पाण्डेय जी ने गांधीवादी विचारधारा के कारण लड्डू में शक्कर का प्रयोग
खुद को ठग्गू कहा, जिससे लड्डू प्रसिद्ध हुए।
ठग्गू के लड्डू की दुकान उर्सला अस्पताल के पास
बंटी-बब्ली जैसी फिल्मों की शूटिंग भी हुई।
ठग्गू के लड्डू की मांग अब विदेश में भी
और पाण्डेय जी के परिवार के अन्य सदस्य भी इसी व्यवसाय से जुड़े हैं।
"ऐसा कोई सगा नही, जिसको हमने ठगा नही"
कानपुर:कानपुर :22 सितम्बर, 2025
( कानपुर ठगी के निराले अंदाज का शहर है)
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जी हाँ ! हम उसी शहर कानपुर के बाशिंदे है, जहाँ पर ठगी का भी निराला अंदाज है | तभी तो उसे ग्राहक से कहना पड़ता है कि " ऐसा कोई सगा नही, जिसको हमने ठगा नही "| इसके बाद भी ग्राहक अपने आप को ठगाने पहुँच जाता है | कारण शुद्ध व गुणवत्ता युक्त लोक प्रचलित ठग्गू का लड्डू है |
ठग्गू के लड्डू के आद्य जनक थे पंडित रामअवतार पाण्डेय | पाण्डेय जी घाटमपुर तहसील के भीतरगांव ब्लाक के परौली ग्राम के निवासी थे और घर के परंपरागत कृषि कार्य को छोड़कर शहर कानपुर आ गये | परौली मे पुरामहत्व का महादेव बाबा का मंदिर है जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा सन् 1908 से संरक्षित है । शहर मे उन्होने काफी संघर्ष किया और पेड़ा और कपड़ा घनी आबादी की गलियों मे फेरी लगाकर बेचा | पाण्डेय जी के पेड़ा का लोग इन्तजार करते कि कब बेचने निकलेगे | इसके बाद रामअवतार पाण्डेय जी ने मेस्टनरोड पर बीच वाले मंदिर के पार्श्व मे भूलोक का अमृत मट्ठा और नेनू ( मक्खन) बेचना शुरू किया | लोग उन्हे मट्ठा गुरू कहने लगे थे | यही पर सबसे पहले ठग्गू के लड्डू बेचने की शुरुआत हुई | लेकिन ख्याति तो उर्सला अस्पताल परेड की बाउन्ड्री के फुटपाथ की दुकान से मिली | ठग्गू के लड्डू की दास्तान के संदर्भ मे प्रचलित है कि पाण्डेय जी गांधीवादी थे और गांधी जी का मानना था कि शक्कर मीठा जहर है , लड्डू मे शक्कर का पर्याप्त प्रयोग था, उनका मत था कि जब हम मीठा जहर (शक्कर) को लोगो को खिला रहे है अतः हम ठग्गू है और उन्होने उसे धंधे मे बेईमानी माना और अपने आपको भी ठग्गू कहलाया, इस प्रकार उनके लड्डू ठग्गू के लड्डू के रूप मे प्रसिद्ध होने लगे | इसी प्रकार उन्होने कुल्फी का नाम बदनाम कुल्फी रखा | पाण्डेय जी का मानना था कि फुटपाथ पर बिक रही है इसलिए बदनाम कुल्फी है, सड़क पर बिक रहे माल की उतनी इज्जत नही मिलती है | पाण्डेय जी हाजिरजवाब तो थे ही और वह स्लोगन व कविता की तुकबंदियाँ भी करते | रामअवतार पाण्डेय जी के बेटे प्रकाश पाण्डेय के मुताबिक जब वह कक्षा तीन के छात्र थे और डलिया मे रखकर लड्डू बेचने निकलता तब मेरे पिता जी ने मेरे सीने व पीठ पर गत्ते का बोर्ड लगा देते जिसमे लिखा रहता था -
" लड्डू खाना काम आपका,और बेंचना काम बाप का |
मै तो हूँ केवल शौकीन, प्रकाश पाण्डेय कक्षा तीन | "
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"एक रुपये के लड्डू तीन प्रकाश पाण्डेय कक्षा तीन "
पंडित रामअवतार जी पाण्डेय जी ने अपने ठग्गू के लड्डू के लिए यह स्लोगन दिया कि -" ऐसा कोई सगा नही, जिसको मैने ठगा नही"|
जिला चिकित्सालय/ उर्सला अस्पताल के फुटनाथ वाली दुकान बाद मे उर्सला अस्पताल की इमरजेन्सी के पूर्वी कोने पर आ गयी । मै इन्हीं दोनो दुकानों मे लड्डू व बदनाम कुल्फी खरीदा और खाया है ।
बंटी-बब्ली से लेकर अब तक कई फिल्मो की शूटिंग भी यहाँ हो चुकी है | ठग्गू के लड्डू की मांग अब देश ही मे नही विदेशो मे भी रहती है | ऐसी है कानपुर की सीनाजोरी के साथ ठगने की पहचान |
पाण्डेय जी के भतीजे की गोविन्दनगर मे अमृत मट्ठा व दूध की बर्फी व पेड़े की दुकान हैं और भांजे की बर्रा बाइपास पर कृष्णधाम की राधा बर्फी की दुकान लब्ध प्रतिष्ठ है ।


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