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कानपुर और उन्नाव के बीच गंगा पुल का बड़ा हिस्सा नदी में गिरा।

 कानपुर में गंगा पुल इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मंगलवार सुबह  गंगा  में गिर गया। 

कानपुर 26 नवंबर, 2024 कानपुर और उन्नाव के बीच  पुराने पुल का एक बड़ा हिस्सा मंगलवार सुबह  गंगा नदी में गिर गया।  ईस्ट इंडिया कंपनी के इंजीनियरों द्वारा 1874 में निर्मित पुल को 2021 में महामारी के दौरान  खंभों में दरारें पाए जाने के बाद सील कर दिया गया था और  असुरक्षित घोषित कर दिया गया था।  लगभग 100 वर्षों तक यह कानपुर और उन्नाव के माध्य से लखनऊ के बीच एकमात्र संपर्क था। 70 के दशक  में जाजमऊ पर बने पुराने पुल पर भार कम करने में मदद की।



लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) अधिकारियों के अनुसार 1,380 मीटर लंबे पुल का करीब 30 मीटर हिस्सा मंगलवार की सुबह गिर  गया। पुल को 2021 में असुरक्षित माना गया और तत्कालीन जिला अधिकारी के आदेश पर सील कर दिया गया था।पीडब्ल्यूडी के इंजीनियरों के अनुसार खंभों में गहरी दरारें आ गई थीं और आगे इसका इस्तेमाल किया जाता तो त्रासदी हो सकती थी। 

 गोला घाट की तरफ से नया पुल बनकर तैयार हो जाने के बाद तुरंत चालू कर दिया गया था। वर्तमान में गोला घाट पुल से रोजाना करीब 1.25 लाख लोग गुजरते हैं। बंद होने के बाद भी लोहे के पुल के निचले हिस्से पर पैदल यात्रियों और साइकिल सवारों को जाने की अनुमति थी बाद मे गलियारे को भी सील कर  कानपुर और शुक्लागंज, उन्नाव में प्रवेश दीवारें खड़ी कर दी गई थीं। पुल मूल रूप से लोहे का बना था और बाद मे  ऊपर गिटटी की सड़क बिछाई गई,  वाहनों की आवाजाही को सुविधाजनक बनाने के लिए इसकी ऊंचाई बढ़ा दी गई। पूरी संरचना  ईंट के खंभों पर बनाई गई थी, जिसकी उम्र 100 वर्ष थी।  सड़क बनने के बाद लोहे के पुल का सही रखरखाव नहीं किया गया, जिससे धातु में जंग लग गई। बंद होने से पहले  22,000 चार पहिया, दो पहिया वाहन और कानपुर में काम करने वाले लगभग एक लाख लोगों आते जाते थे। यह 12 मीटर चौड़ा और अंत तक 1.38 किमी लंबा था। 

ईस्ट इंडिया कंपनी ने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद 1866 में इस पुल का निर्माण शुरू किया था। एक इतिहासकार के अनुसार अंग्रेज कानपुर में प्रवेश करने के लिए पीपे के पुलों का उपयोग कर रहे थे, जो बाढ़ मे खराब जाते थे, और आना जाना प्रभावित  होता था ।  कंपनी के इंजीनियरों ने 1874 में सात साल और सात महीने में पुल का निर्माण पूरा किया था। नैरो-गेज लाइन पर ट्रेनों की आवाजाही के लिए एक समानांतर पुल 1910 में बनाया गया था।

यह अवध का प्रवेश द्वार पुल इतिहास का एक हिस्सा है और  कानपुर के आर्थिक उत्थान में महत्वपूर्ण याोगदान था । सरकार इस विरासत को बचाने मे आर्थिक सहयोग करेगी ।

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