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उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से ८० किमी दूर सीतापुर नैमिषारण्य मे देवों ऋषियों से ईश्वर की भक्ति और पापकर्मो, पुनर्जन्म से मुक्ति मांग सकते है ।चन्डी शरण दीक्षित सुपर सीनियर सीटीजन

नैमिषारण्य मे देवों ऋषियों से ईश्वर की भक्ति और पापकर्मो, पुनर्जन्म से मुक्ति मांग सकते है । 

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से ८० किमी दूर सीतापुर  में गोमती नदी  पर स्थित
८८००० ऋषियों की तप स्थली 
समस्त  साढे तीन करोड़ तीर्थ  एवं   तेंतीस कोटि देवता नैमिषारण्य में वास करते हैं । 
चन्डी शरण दीक्षित सुपर सीनियर सीटीजन, पूर्व अघ्यक्ष भारत विकास परिषद, लाजपत नगर कानपुर

कानपुर: 21 दिसंबर, 2024

नैमिषारण्य उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से ८० किमी दूर सीतापुर जनपद में गोमती नदी के बाएँ तट पर स्थित विश्वव्यापी प्रसिद्ध  तीर्थ है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार ८८००० ऋषियों की तप स्थली है। वायु पुराण के अनुसारमाघ माहात्म्य तथा बृहद्धर्मपुराण के पूर्व-भाग मे अंकित है आज भी गुप्त स्थल में ऋषियों का स्वाध्यायानुष्ठान चलता है। लोमहर्षण के पुत्र सौति उग्रश्रवा ने यहीं ऋषियों को पौराणिक कथाएं सुनायी थीं।






वाराह पुराण के अनुसार भगवान द्वारा निमिष मात्र में दानवों का संहार स्थल हाने के कारण इसका नाम 'नैमिषारण्य' कहलाया। वायु, कूर्म आदि पुराणों के अनुसार भगवान के मनोमय चक्र की नेमि (हाल) यहीं विशीर्ण हुई (गिरी) थी, इस कारण से इसका नाम नैमिषारण्य है । 

            प्रययुस्तस्य चक्रस्य यत्र नेमिर्व्यशीर्यत।तद् वनं तेन विख्यातं नैमिषं मुनिपूजितम्॥

'नैमिष' की उत्पत्ति 'निमिष' शब्द से है, क्योंकि गौरमुख ने निमिष में असुरों की सेना का संहार किया था (कर्निघम, आ.स.रि. भाग १)। अन्य अनुश्रुति के अनुसार अधिक मात्रा में पाए जानेवाले फल निमिष के कारण इसका नाम नैमिष पड़ा। मत्स्य २२/१२/१४, वायुपुराण १/१५, ब्रह्माण्ड पुराण १/२/८ के अनुसार असुरों के शरीर विष्णु के चक्र से कट कर निमि नैमिष में गिरे थे। । दूसरे अन्य प्रमाणो के अनुसार जब असुरों के आतंक से पीड़ित देवताओं का समूह महादेव के नेतृत्व में ब्रह्मा के पास पहुँचा, तो ब्रह्मा ने अपना चक्र छोड़ा और चक्र जहा गिरा वह स्थान तपस्या के लिये दे दिया । यह चक्रतीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है। चक्रतीर्थ षट्कोणीय व्यास १२० फुट का है। पवित्र जल नीचे से आता है और बाहर की ओर बहता रहता है, जिसे 'गोदावरी प्रवाह स्थल ' कहते हैं। नैमिषारण्य मे व्यासगद्दी, ललिता देवी का मंदिर, भूतनाथ का मंदिर, कुशावर्त, ब्रह्मकुंड, जानकीकुंड और पंचप्रयाग आदि प्रसिद्ध स्थल है।
नैमिषारण्य का उल्लेख वाल्मीकि रामायण के युद्ध-काण्ड की पुष्पिका है। पुष्पिका के अनुसार लव और कुश ने गोमती नदी के किनारे राम के अश्वमेध यज्ञ में सात दिनों में वाल्मीकि रचित ग्रन्थ का अघ्ययन किया था ।
यह भी संज्ञान मे है कि महर्षि शौनक के मन में दीर्घकालिक ज्ञान ग्रहण करने की इच्छा थी। ब्रह्माजी ने उनसे प्रसन्न होकर चक्र दिया और कहा- इसे चलाते हुए चले जाओ। जहां इस चक्र की `नेमि' (बाहरी परिधि) गिर जाय, उसी स्थल को पवित्र समझकर वहीं आश्रम बनाकर ज्ञान ग्रहण करो। शौनक जी के साथ अदृसी सहस्र ऋषि थे। । गोमती नदी के किनारे चक्र की नेमि गिर भूमि में प्रवेशित कर गयी । चक्र की नेमि गिरने से वह तीर्थ 'नैमिष' कहा गया। जहां चक्र भूमि में प्रवेशित कर गया वह चक्रतीर्थ कहा जाता है। यह तीर्थ गोमती नदी के बाये किनारे पर है और ५१ पितृस्थानों में एक स्थान माना जाता है। यहां सोमवती अमावस्या को मेला लगता है।
सूतजी ने शौनकजी को इसी तीर्थ में अठारहों पुराणों की कथा सुनायी। द्वापर में श्रीबलरामजी यहां पधारे थे। गल्ती से लोमहर्षण सूत की मृत्यु हो गयी। बलराम जी ने उनके पुत्र उग्रश्रवा को वरदान दिया कि वे पुराणों के वक्ता हों और ऋषियों को सतानेवाले राक्षस बल्वल का वध करे। तीर्थयात्रा करके बलराम जी फिर नैमिषारण्य आये और यहां उन्होंने यज्ञ किया।
नैमिषारण्य तीर्थ अंतर्गत कई प्राचीन पौराणिक दर्शनीय धर्मस्थल/देवस्थल है चक्रतीर्थ,माँ ललिता देवी मंदिर , भूतेश्वर नाथ मंदिर ,व्यास गद्दी,सूत गद्दी, मनु-सतरूपा तपस्थली , हनुमान गढ़ी, चारधाम मंदिर , काशी कुंड तीर्थ , देवपुरी ,काशी विश्वनाथ मंदिर , रुद्रावर्त तीर्थ , देवदेवेश्वर , संत आपानारायण स्वामी समाधि स्थल , बालाजी मंदिर,त्रिशक्ति धाम, हत्या हरण तीर्थ, कालिका देवी,काली पीठ, आदी प्रमुख हैं। नैमिषारण्यसे कुछ दूरी पर मिश्रिख है- दधीचि कुंड। वृत्तासुर राक्षस के वध के लिए वज्रायुध के निर्माण हेतु फाल्गुनी पूर्णिमा को जब इन्द्रादि देवताओं ने महर्षि दधीचि से उनकी अस्थि मागी तो महर्षि दधीचि ने कहा मैं समस्त तीर्थों में स्नान कर देवताओं के दर्शन करना चाहता हूं तो इन्द्र ने विश्व के समस्त तीर्थों और समस्त देवताओं का आव्हान किया तो समस्त तीर्थों और पवित्र नदियों ने एक सरोवर में मिश्रण हुए महर्षि दधीचि ने स्नान किया तब से इस कुण्ड का नाम 'दधीचि कुण्ड'या 'मिश्रित तीर्थ' के नाम से जाना जाता है और समस्त देवताओं ने 84 कोस के नैमिषारण्य में अपना स्थान ग्रहण किया दधीचि जी ने सभी देवताओं का दर्शन किया परिक्रमा करने के बाद अपनी अस्थियों को दान में दे दिया तब से समस्त तीर्थ 35000000 साढे तीन करोड़ तीर्थ' एवं समस्त देवता 33 तेंतीस कोटि देवता नैमिषारण्य में वास करते हैं और भक्त समस्त तीर्थों और देवताओं का दर्शन 84कोश परिक्रमा करने के लिए देश विदेश से आते हैं ।
चक्रतीर्थ
नैमिषारण्य स्टेशन से लगभग एक मील दूर चक्रतीर्थ है। यहां एक सरोवर है, जिसका मध्यभाग गोलाकार है और जिससे लगातार जल प्रवाहित होता है । उस मध्य के घेरे के बाहर स्नान करने का घेरा है। यहीं नैमिषारण्य का मुख्य तीर्थ है। इसके किनारे अनेक मंदिर हैं। मुख्य मंदिर भूतनाथ महादेव का है। चक्रतीर्थ के संन्दर्भ मे यह कहा जाता है कि एक बार अट्ठासी हजार ऋषि-मुनियों ने ब्रह्मा जी से निवेदन कि जगत कल्याण के लिये तपस्या हेतु भूमि का प्रबन्ध कर दे ।। ब्रह्मा जी ने अपने मन से एक चक्र उत्पन्न करके ऋषियों कहा कि इस चक्र के पीछे चलकर उसका अनुकरण करो, जिस भूमि पर इस चक्र की नेमि (अर्थात मध्य भाग) स्वतः गिर जाये वह पॄथ्वी का मध्य भाग है, तथा विश्व की सबसे दिव्य भूमि है। इस परम पवित्र भूमि के दर्शन विना जीव का जीवन भी कभी सफल नहीं होगा ।
परिक्रमा स्थल
नैमिषारण्य की परिक्रमा ८४ कोस की है जो प्रतिवर्ष फाल्गुनमास की अमावस्या के बाद प्रतिपदा को आरम्भ होकर पूर्णिमा को समाप्त होती है । नैमिषारण्य की छोटी (अंतर्वेदी) में यहां बडी संख्या मे तीर्थ यात्री आते है ।
यहां के प्रमुख तीर्थों में:पंचप्रयाग - पक्का सरोवर जिसके किनारे अक्षयवट वृक्ष हैं।ललितादेवी- पुराणों में नैमिषारण्य में लिंग धारिणी देवी का वर्णन है, । भागवत के श्लोक में भी वाराणस्यां विशालाक्षी नैमिषेलिंग धारिणी, प्रयागे ललिता देवी कामुका गंध मादने...। नैमिषारण्य में ललिता देवी 108 देवी पीठाें में है। देवी भागवत के अनुसार दक्ष द्वारा पति के अपमान से आहत होकर प्राणों की आहुति दे दी। तब शंकर जी ने अपने गणों के साथ यज्ञ को नष्ट कर डाला और सती के शव को लेकर इधर-उधर विचरण करा दिया था। उनके नरसंहार से विरत न होते देखकर विष्णु भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शव के 108 टुकड़े कर डाले। शव के अंश जिन-जिन स्थानों पर गिरे, वहां पर देवी पीठ बने। सती जी का हृदय नैमिषारण्य में गिरा था वह सिद्ध पीठ हो गया है
चक्रतीर्थ- नैमिषारण्य में लोकप्रिय हिंदू तीर्थो में है । पौराणिक कथा के अनुसार इस स्थान पर ब्रह्मा के चक्र ने पृथ्वी में एक छेद किया था, जिससे पानी का विशाल भंडार उत्पन्न हुआ था। इस तालाब के पानी में डुबकी लगाने से व्यक्ति का मन, शरीर और आत्मा पवित्र होती है।
हनुमान गढ़ी
 यह नैमिषारण्य में समृद्ध पौराणिक महत्व वाला प्राचीन पवित्र स्थल है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान हनुमान के पाताल लोक से उद्भव दर्शाया गया है। बड़े हनुमान के नाम से भी जाना जाता है यह भगवान हनुमान की प्रतिमा 12 फीट ऊंची है। हनुमान जी भगवान राम और लक्ष्मण को अपने कंधे पर ले जा रहे है। हनुमान गढ़ी के इष्टदेव का मुख दक्षिण दिशा की ओर है को दक्षिणेश्वर मंदिर के रूप में जाना जाता है । चक्रतीर्थ से लगभग 500 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह मंदिर रामायण काल ​​का है
दशाश्वमेध टीला
टीले पर मंदिर में श्रीकृष्ण और पाण्डावों की मूर्तियां हैं।
चार धाम मंदिर 
भारत के चारों दिशाओं में आदिशंकराचार्य जी के द्वारा स्थापित चारों धाम मंदिर नैमिषारण्य में महर्षि गोपाल दास जी के द्वारा स्थापित चारों धाम १ जगन्नाथ धाम २ बद्रीनाथ धाम ३ द्वारिकाधीश धाम ४ रामेश्वरम धाम दर्शन है जो चार धाम दर्शन करने नहीं जा सकते वह भक्त नैमिषारण्य में चारधाम दर्शन कर लेने से ही समस्त पुण्य फल प्राप्त होता है
सूत गद्दी 
 सूतजी की गद्दी मे सूत जी ने शौनक आदि 88 हजार ऋषियों को श्रीमद् भागवत महापुराण सुनाई थी वहाॅ राधा-कृष्ण तथा बलरामजी का मंदिर है
देवपुरी मंदिर 
यहां 111 मंदिरो का एक साथ दर्शन मिलता है । यहां स्वामी श्रीनारदनंदजी महाराज का आश्रम तथा एक ब्रह्मचर्याश्रम भी है, जहां ब्रह्मचारी प्राचीन पद्धति से शिक्षा प्राप्त करते हैं। आश्रम में साधक लोग साधना करते हैं। कलियुग में समस्त तीर्थ नैमिष क्षेत्र में निवास करते हैंकाशीविश्वनाथ मंदिर ( विश्वेश्वर महादेव ) - चक्रतीर्थ ललिता देवी मार्ग से आधा किलोमीटर की दूरी शिवधाम है यहां सावन मास में निरन्तर दर्शन करने से सारे कार्य सिद्ध होते हैं , नैमिष स्थित काशी तीर्थ के निकट स्थित भोले बाबा का पवित्र धाम काशीविश्वनाथ मंदिर है, जो व वाराणसी जाकर बाबा काशीविश्वनाथ के दर्शन न कर सके उसे यहाँ दर्शन करने से फल मिलता है ये प्राचीन शिवालय शिवपुराण में विश्वेश्वर के नाम से सम्बोधित है , धर्मराज के तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव विश्वेश्वर महादेव के रूप में विराजमान हुये थे । चक्रतीर्थ के पूर्व में काशी क्षेत्र में काशीकुण्ड के निकट द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से प्रमुख प्रभु काशी विश्वनाथ जी का आगमन हुआ था उसकी प्रतिकृति आज भी है मान्यता है कि इस शिवलिंग के दर्शन पूजन से वाराणसी के काशी विश्वनाथ के समकक्ष पुण्य मिलता है। इसके अलावा मां अन्नपूर्णा देवी का मंदिर है जो वाराणसी में अन्नपूर्णा दर्शन के समान फल देता है ।
परमसंत आपा नारायण स्वामी समाधि स्थल
काशीविश्वनाथ मंदिर के निकट नैमिष के परम् विरक्त सन्त परमसंत नारायण स्वामी की समाधि है। नारायण स्वामी ने यहां तपस्या करते हुए विश्व कल्याण के लिए जीवित समाधि ली।
नैमिषारण्य मे देवों ऋषियों से ईश्वर की भक्ति और पापकर्मो, पुनर्जन्म से मुक्ति मांग सकते है ।

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