भारत में आत्महत्या एक गंभीर सामाजिक, आर्थिक और मानसिक स्वास्थ्य समस्या है, जो विभिन्न आयु समूहों और सामाजिक वर्गों को प्रभावित करती है।भारत में आत्महत्या की दर प्रति 100,000 व्यक्तियों में लगभग 14 है, जो वैश्विक औसत 9 प्रति 100,000 से कहीं अधिक है वर्ष 2016 में भारत में 230,314 आत्महत्याओं की घटनाएँ हुई थीं, जिसमें युवा आयु वर्ग 15-29 वर्ष सबसे ज्यादा थे ।
भारत में आत्महत्या मानसिक स्वास्थ्य समस्या जैसे डिप्रेशन, तनाव, और मानसिक विकार जैसे कारक आत्महत्या के प्रयासों को प्रेरित करते हैं, आर्थिक दबाव किसानों की आत्महत्या का एक प्रमुख कारण आर्थिक संकट और बढ़ता कर्ज है, जिनसे किसान अक्सर उबर नहीं पाते, शैक्षणिक तनाव छात्रों पर शिक्षा संबंधी दबाव भी आत्महत्या के प्रयासों का एक बड़ा कारण बन रहा है, जिसमें परीक्षा में असफलता का डर शामिल है, सोशल मीडिया पर उपस्थिति और अपेक्षाएँ भी युवाओं के बीच तनाव व अवसाद का कारण बन रही हैं।
अधिकतर आत्महत्याएँ महिलाएँ करती हैं, जिनमें गृहिणियों की संख्या सबसे अधिक है। गृहिणियों द्वारा आत्महत्या की मुख्य वजह सामाजिक और आर्थिक दबाव, घरेलू हिंसा, और सीमित वित्तीय स्वायत्ता है[
सरकारें और विभिन्न संगठन आत्महत्या की रोकथाम के लिए उपाय कर रहे हैं मानसिक स्वास्थ्य देखभाल को बेहतर बनाना। हेल्पलाइन सेवाओं की सुविधा उपलब्ध कराना आर्थिक और सामाजिक समर्थन योजनाएं विकसित करना ताकि व्यक्तियों को उन समस्याओं से निपटने में मदद मिल सके जो आत्महत्या के लिए प्रेरित करती हैं आदी।
आत्महत्या की समस्याओं से निपटने के लिए हमें सामाजिक रूप से जागरूकता बढ़ाने की भी आवश्यकता है जो मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े कलंक को कम करे यह न केवल व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित करती है बल्कि समाज और देश की आर्थिक स्थिति पर असर डालती है। इसे रोकने के लिए समग्र प्रयासों की आवश्यकता है।
गाँवों में आत्महत्या एक गंभीर समस्या है जो आमतौर पर मानसिक स्वास्थ्य, आर्थिक तनाव, सामाजिक अलगाव और अन्य कारकों के कारण होती है। इसके प्रति जागरूकता बढ़ाने और मदद के विभिन्न साधनों को उपलब्ध कराने की आवश्यकता है। गांवों में आत्महत्या की घटनाओं को रोकने के लिए समुदाय का सहयोग और सही जानकारी बेहद महत्वपूर्ण है।
एक रिटायर्ड सब-इंस्पेक्टर का बेटा सैारभ भी उनमे से एक । अधिक मन से योजन कर इसे रोकने का प्रयास किया जा सकता है ।
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