छल की परिभाषा तथा इसके आवश्यक तत्व
यह सम्पत्ति सम्बन्धी अपराधों में एक जाना पहचाना अपराध है ! दैनिक संव्यवहारों में सामान्यत: यह अपराध कारित होता ही रहता है ! भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 415 में इसकी परिभाषा तथा आगामी धाराओं में इसके गम्भीर स्वरूपों का उल्लेख किया गया है !परिभाषा :-
संहिता की धारा 415 के अनुसार -
जो कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति से प्रवंचना कर उस व्यक्ति को, जिसे इस प्रकार प्रवंचित किया गया है, कपटपूर्ण या बेईमानी से उत्प्रेरित करता है कि वह कोई सम्पत्ति किसी व्यक्ति को परिदत्त कर दे या यह सम्पत्ति दे दे कि कोई व्यक्ति किसी सम्पत्ति को रखे या साशय उस व्यक्ति को, जिसे इस प्रकार प्रवंचित ना किया गया होता तो न करता या करने का लोष ना करता और जिस कार्य या लोप से उस व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक, ख्याति सम्बन्धी या साम्पतिक नुकसान या अपहानि कारित होती है या कारित होनी सम्भाव्य है तो वह छल करता है, यह कहा जायेगा !
सरल भाषा में यह कहा जा सकता है कि किसी व्यक्ति से प्रवंचना (धोखा) कर उसे कपटपूर्ण या बेईमानी से उस बात के लिए उत्प्रेरित करना कि वह कोई सम्पत्ति परिदत्त कर दे या वह कोई कार्य करे या न करे जिससे उसे शारीरिक, मानसिक, ख्याति सम्बन्धी या साम्पतिक नुकसान या अपहानि कारित हो या कारित होनी सम्भाव्य हो, तो वह छल है !
उदाहरण- क सिविल सेवा में होने का मिथ्या व्यपदेशन करके साशय ख से प्रवंचना करता है और इस प्रकार बेईमानी से ख को उत्प्रेरित करता है कि वह ऊसे उधार पर माल ले लेने दे जिसका मूल्य चुकाने का उसका इरादा नहीं है तो क, ख के साथ छल करता है !
इसी प्रकार क, ख को किसी वस्तु का नकली नमूना दिखाकर ख से साशय प्रवंचना करके उसे यह विश्वास कराता है कि वह वस्तु उस नमूने के अनुरूप है और तद्द्वारा उस वस्तु को खरीदने और उसका मूल्य चुकाने के लिए ख को बेईमानी से उत्प्रेरित करता है ! क, ख के साथ छल करता है !
रामनारायण पोपली बनाम सी.बी.आई. एआईआर 2003 एस.सी. 2748 के मामले में छल की परिभाषा देते हुए उच्चतम न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि - किसी व्यक्ति से प्रवंचना करके उसे कपटपूर्ण या बेईमानी से इस बात के लिए प्रेरित करना कि वह किसी व्यक्ति को कोई सम्पत्ति परिदत्त कर दे या इस बात की सहमति दे कि कोई व्यक्ति किसी सम्पत्ति को अपने पास रखे, छल है !
छल केवल सम्पत्ति या ख्याति के सम्बन्ध में ही नहीं होता बल्कि शारीरिक और मानसिक हानि कारित करने के लिए भी हो सकता है ! उदाहरण - एक वेश्या किसी व्यक्ति को विश्वास दिलाते हुए कि उसे कोई रोग नहीं है, अपने साथ लैंगिक सम्भोग करने के लिए प्रेरित करती है ! लैंगिक सम्भोग के पश्चात उस व्यक्ति को सिफलिस हो जाता है ! अत: वेश्या ने छल किया ! [रक्मा (1886) 11 मुम्बई 59]
छल के आवश्यक तत्व :-
छल की उपरोक्त परिभाषा से इसके निम्नांकित तत्व स्पष्ट होते हैं -
1- किसी व्यक्ति से प्रवंचना करना :-
छल का पहला आवश्यक तत्व है - किसी व्यक्ति से प्रवंचना करना ! दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि छल में किसी व्यक्ति को जानबूझकर धोखा दिया जाता है !
प्रवंचना (धोखा) से अभिप्राय है किसी व्यक्ति को ऐसी बात का विश्वास कराना जो गलत है या किसी तथ्य के सम्बन्ध में भुलावा देना या भूल करने की ओर मार्गदर्शित करना ! अन्य शब्दों में यह कहा जा सकता है कि कपटपूर्वक किसी ऐसे तथ्य के विधमान होने का व्यपदेशन करना जो अस्तित में ही नही है, प्रवंचना है !
अत: किसी व्यक्ति को मिथ्या बात में विश्वास दिलाना अथवा तथ्यों के बारे में भ्रमित करना धोखा है !ऐसी प्रवंचना का अभिव्यक्त होना आवश्यक नहीं है ! यह विवक्षित या आचरण द्वारा भी हो सकता है !
प्रवंचना पर झंडा सिंह [(1917) 18 पी.आर. 6 तथा कोमल दास [(1865)2 डब्ल्यू.आर.क्रि. 7] के दो अच्छे मामले हैं ! इनमें दलित वर्ग की बालिकाओं को उच्च वर्ग की बताकर उनसे विवाह करने के लिए व्यक्ति को उत्प्रेरित करना प्रवंचना माना गया !
उल्लेखनीय है कि केवल मिथ्या व्यपदेशन करना ही पर्याप्त नहीं है ! यह भी आवश्यक है कि ऐसा कथन करने वाले व्यक्ति को इस बात का ज्ञान रहा हो कि वह मिथ्या है तथा ऐसा कथन करने का आशय धोखा देने अर्थात् प्रवंचना करने का रहा हो ! [मोती चक्रवर्ती (1950) 2 कोलकाता 70]
2- कपटपूर्वक या बेईमानीपूर्ण आशय का होना :-
छल का दूसरा आवश्यक तत्व है कपटपूर्वक या बेईमानीपूर्ण आशय का होना !
हीरालाल हरीलाल बनाम सी.बी.आई. एआईआर 2003 एस.सी. 2545 के मामले में भी यह निर्धारित किया गया है कि छल के लिए कपटपूर्वक या बेईमानीपूर्ण आशय का होना आवश्यक है !
फिर कपटपूर्ण या बेईमानीपूर्ण आशय का प्रारम्भ से होना आवश्यक है ! जयन्ती बनाम स्टेट 1984 क्रि.ला.ज. 1533 के मामले में नवयुवती विवाह के वचन के आधार पर सम्भोग की सम्मति देती है और ऐसा सम्भोग तब तक चलता रहता है जब तक कि युवती गर्भवती नहीं हो जाती ! अभियुक्त को छल का दोषी साबित करने के लिए यह सिद्ध किया जाना आवश्यक है कि आरम्भ से ही उसका आशय विवाह करने का नहीं रहा था !
हरी मांझी बनाम स्टेट 1990 क्रि.लॉ.ज. 650 कोलकाता के मामले में अभियुक्त द्वारा एक लड़की तथा उसके माता पिता को विवाह का आश्वासन दिया गया और इसी आधार पर उसने लड़की से लैंगिक सम्बन्ध बनाये रखे ! ग्राम पंचायत के समक्ष इस तथ्य की तथा गर्भधारण के तथ्य की स्वीकारोक्ति की गई ! लेकिन बाद में उसने किसी और लड़की से विवाह कर लिया ! अभियुक्त को छल के लिए दोषी नहीं माना गया क्योंकि यह साबित नहीं हो सका कि अभियुक्त का आरम्भ से ही लड़की के साथ विवाह नहीं करने का आशय था !
आशय छल का एक आवश्यक तत्व है ! छल के मामलों में यह सिद्ध किया जाना आवश्यक है कि संव्यवहार के समय ही अभियुक्त का बेईमानीपूर्ण एवं कपटपूर्ण आशय था ! केवल वचन भंग को छल नहीं माना जा सकता ! (इन्दर मोहन गोस्वामी बनाम स्टेट अॉफ उत्तरान्चल एआईआर 2008 एस.सी. 251)
3- प्रवंचित व्यक्ति को उत्प्रेरित किया जाना :-
छल का तीसरा महत्वपूर्ण तत्व है अभियुक्त द्वारा कपटपूर्वक या बेईमानी से प्रवंचित किये गये व्यक्ति को इस बात के लिए उत्प्रेरित करना कि -
- वह कोई सम्पत्ति किसी व्यक्ति को फरिदत्त कर दे,
- सम्मति दे दे कि कोई व्यक्ति किसी सम्पत्ति को रख रखे,
- वह ऐसा कोई कार्य करे या करने का लोप करे जिससे उस व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक, ख्यातति सम्बन्धी या साम्पतिक नुकसान या अपहानि कारित हो!
के. कृष्णमूर्ति बनाम स्टेट (1965) 1 क्रि.लॉ.ज. 355 एस.सी. के मामले में अभियुक्त चेन्नई चिकित्सा सेवा में अस्थायी सिविल सहायक सर्जन के रूप में कार्यरत था! उसने अस्थायी नियुक्ति हेतु चेन्नई लोक सेवा आयोग में आवेदन किया जिसमें उसने अपने नाम, पिता के नाम, जन्म स्थान व पद की पात्रता के लिए आधारभूत शैक्षणिक योग्यता के बारे में मिथ्या व्यपदेशन किया ! साक्षात्कार के पश्चात् उसका चयन कर लिया गया ! वह कई वर्षों तक सरकार से वेतन प्राप्त करता रहा ! बाद में उसके कपट का पता चला ! उसे छल का दोषी माना गया क्योंकि उसने सरकार के साथ प्रवंचना कर उसे वेतन परिदत्त करने के लिए साशय उत्प्रेरित किया था !
एन.एम. चक्रवर्ती बनाम स्टेट एआईआर 1977 एस.सी. 1174 के मामले में मिथ्या व्यपदेशन कर कई पासपोर्ट प्राप्त करने को उच्चतम न्यायालय द्वारा छल माना गया है !
छल की परिभाषा में प्रवंचित व्यक्ति को उत्प्रेरित कर कराये जाने वाले कार्यों को दो श्रेणियों में रखा गया है-
1- ऐसे व्यक्ति को इस बात के लिए प्रेरित किया जाना कि वह किसी व्यक्ति को कोई सम्पत्ति परिदत्त करे या इस बात की सम्मति दें कि कोई व्यक्ति किसी सम्पत्ति को रखे,
2- ऐसे व्यक्ति को इस बात के लिए उत्प्रेरित किया जाना कि वह कोई ऐसा कार्य करे या करने का लोप करे जिसे वह नहीं करता यदि उसे प्रवंचित नहीं किया जाता!
जोसफ सेल्वराज बनाम स्टेट अॉफ गुजरात एआईआर 2011 एस.सी. 2258 के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह निर्धारित किया गया है कि किसी चैनल के प्रसारण बाबत केबल अॉपरेटर को शुल्क का भुगतान नहीं किया जाना सिविल प्रकृति का मामला है! इसे छल नही कहा जा सकता क्योंकि इसमें सम्पत्ति का परिदान करने हेतु बेईमानीपूर्वक उत्प्रेरणा का अभाव था!
कम्पनी द्वारा छल के मामलों में आर्थिक अपराध का का विशेष न्यायालय भारतीय दण्ड संहिता एवं कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत अपराधों का प्रसंज्ञान ले सकता है एवं विचारण कर सकता है ! (एस.सत्यनारायण बनाम एनर्जी मास्ट पॉवर इंजीनियरिंग एण्ड कन्स्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड, एआईआर 2015 एस.सी. 2166)
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