राजनीति के अपराधीकरण को एक बड़ा मुद्दा
अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर जनहित याचिका
सांसदों और विधायकों के आपराधिक मामलों का शीघ्र निपटारा
दोषी ठहराए गए राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग ।
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 और 9 पर चुनाव आयोग से तीन सप्ताह के भीतर जवाब मांगा
1 जनवरी, 2025 तक 2024 में दर्ज 892 मामले सहित कुल 4,732 आपराधिक मामले लंबित
कानपुर 11 फरवरी, 2025 नई दिल्ली: 10 फरवरी, 2025 राजनीति के अपराधीकरण को बड़ा मुद्दा बताते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर जनहित याचिका जिसमें देश में सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटारे के अलावा दोषी ठहराए गए राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी। सोमवार को पूछा कि आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद कोई व्यक्ति संसद में कैसे वापस आ सकता है। जस्टिस दीपांकर दत्ता और मनमोहन की पीठ ने भारत के अटॉर्नी जनरल से राय मागी है ।
न्यायालय ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 और 9 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने पर केंद्र और भारत के चुनाव आयोग से तीन सप्ताह के भीतर जवाब मांगा।
"एक बार जब दोषी ठहराया जाता है, और दोषसिद्धि को बरकरार रखा जाता है... लोग संसद और विधानमंडल में कैसे वापस आ सकते हैं? उन्हें जवाब देना होगा। इसमें हितों का टकराव भी स्पष्ट है। वे कानूनों की जांच करेंगे...," पीठ ने आगे कहा, "हमें जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 और 9 के बारे में जानकारी होनी चाहिए। एक सरकारी कर्मचारी जो भ्रष्टाचार या राज्य के प्रति निष्ठाहीनता का दोषी पाया जाता है, उसे सेवा में उपयुक्त नहीं माना जाता है, लेकिन वह मंत्री बन सकता है।"
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि चूंकि एक तीन न्यायाधीशों की पूर्ण पीठ ने सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटान पर निर्णय पारित किया था, इसलिए एक दो न्यायाधीशों की खंडपीठ के लिए मामले को फिर से खोलना अनुचित होगा। इसलिए अदालत ने इस मुद्दे को एक बड़ी पीठ द्वारा विचार के लिए मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना के समक्ष रखने का निर्देश दिया।
वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया एमिकस क्यूरी (न्यायालय मित्र ) के अनुसार शीर्ष न्यायालय द्वारा समय-समय पर दिए गए आदेशों तथा उच्च न्यायालय द्वारा निगरानी के बावजूद सांसदों और विधायकों के विरुद्ध बड़ी संख्या में मामले लंबित हैं। हंसारिया ने कहा कि जनहित याचिका में ऐसे मामलों के शीघ्र निपटारे की मांग की गई है तथा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है, जो दोषी व्यक्ति की अयोग्यता अवधि को छह वर्ष तक सीमित करती है।
उन्होंने कहा कि याचिका में यह भी सवाल है कि क्या किसी आपराधिक अपराध में दोषी ठहराया गया व्यक्ति राजनीतिक दल बना सकता है, या किसी राजनीतिक दल का पदाधिकारी हो सकता है।
हंसारिया ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने 2017 में 10 विभिन्न राज्यों में 12 विशेष न्यायालयों की स्थापना के लिए निर्देश पारित किए थे तथा सांसदों और विधायकों के विरुद्ध लंबित आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटारे की निगरानी के लिए कई निर्देश पारित किए गए थे।
9 नवंबर, 2023 को शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालयों को मामलों के त्वरित निपटान के लिए निगरानी के लिए एक विशेष पीठ स्थापित करने का निर्देश दिया था। स्थिति दयनीय बनी हुई है तथा मुकदमा बहुत धीमी गति से चल रहा है।
हंसारिया ने कहा, "यह शर्म की बात है कि इन सबके बाद भी 42 प्रतिशत मौजूदा लोकसभा सदस्यों पर आपराधिक मामले30 साल से मामले लंबित हैं।" देरी के कारणों पर विस्तार से बताते हुए एमिकस ने कहा कि विशेष अदालतें अक्सर सांसदों और विधायकों के मामलों के अलावा अन्य मामलों की सुनवाई करती हैं, आरोपियों के पेश न होने के कारण बार-बार स्थगन होता है और कुछ मामलों में गवाहों को अदालतों द्वारा बुलाने के समय पर समन नहीं दिए जाते।
न्यायमूर्ति मनमोहन ने बीच में हस्तक्षेप करते हुए कहा, "स्थिति को असामान्य न बनाएं पूरे देश को एक ही रंग में रंग रहे हैं ऐसा नहीं होता। ट्रायल कोर्ट में मुवक्किल कहेंगे कि सुबह 10.30 बजे यह जज अपने चैंबर में चले गए। दूसरे जज पर इतना बोझ है। आपको अध्ययन करने की जरूरत है। कृपया हमें बताएं कि वास्तविक कारण क्या है। कोई एक ही दिशा नहीं हो सकती।" उपाध्याय की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने तर्क दिया कि कानून निर्माताओं का यह इरादा नहीं था कि बलात्कार या हत्या जैसे जघन्य अपराधों के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्ति को सांसद या विधायक के रूप में चुना जाए। उन्होंने कहा, "हम देख रहे हैं कि अपहरण, बलात्कार, हत्या के आरोपों वाले 46-48 प्रतिशत लोग संसद में वापस आ रहे हैं । इस धारा का मसौदा तैयार करते समय संसद की मंशा कभी नहीं रही होगी।" हलफनामे में हंसारिया ने कहा कि विधायकों का मामलों की जांच या सुनवाई पर बहुत प्रभाव होता है, जिसे निष्कर्ष पर नहीं पहुंचने दिया जाता।
अधिवक्ता सेन्हा कलिता के माध्यम से दायर हंसारिया के हलफनामे के अनुसार 1 जनवरी, 2025 तक 2024 में दर्ज 892 मामले सहित कुल 4,732 आपराधिक मामले लंबित हैं।
भारत के राजनीतिक दलों की राजनीति के अपराधीकरण और भारतीय लोकतंत्र पर इसके बढ़ते हानिकारक प्रभावों को रोकने के प्रति अनिच्छा को देखते हुए यहाँ के न्यायालयों को अब गंभीर आपराधिक प्रवृत्ति वाले उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाने जैसे फैसले पर विचार करना चाहिये।
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