लोक अदालत को सिविल प्रक्रिया संहिता, १९०८ के तहत सिविल कार्यवाही की शक्ति
दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 195, और के अध्याय 6 के प्रयोजन हेतु की कार्यवाही सिविल कार्यवाही
कानपुर 10, मार्च, 2025
10, मार्च, 2025 कानपुर में आयोजित लोक अदालत ने शनिवार को कुल 217,008 मामलों का निपटारा किया। इस प्रक्रिया में न्यायिक अधिकारियों ने विभिन्न प्रकार के मामलों, जैसे कि आपराधिक, शमनीय, वैवाहिक, दीवानी, मोटर दुर्घटना दावे, राजस्व, और मध्यस्थता मामलों में जुर्माना लगाया और कुल 26.78 करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति प्रदान की।इस लोक अदालत में बीमा कंपनियों ने भी भाग लिया, जिन्होंने प्री-लिटिगेशन चरण में समझौते के माध्यम से दावे के मामलों का समाधान किया। लोक अदालत का उद्देश्य जनता को त्वरित और सस्ता न्याय प्रदान करना होता है, जिससे लोग लंबी न्यायिक प्रक्रियाओं से बच सकें।
इस तरह की लोक अदालतों में, कई प्रकार के मामले निपटाए जाते हैं, लेकिन सभी मामलों का निपटारा नहीं होता। कुछ ऐसे मामले होते हैं जो लोक अदालत के लिए उपयुक्त नहीं होते, जैसे कि गंभीर आपराधिक मामले, जिनमें समझौता नहीं किया जा सकता।
यह आयोजन न्यायपालिका पर कार्यभार कम करने का भी एक उपाय है, जिससे न्यायिक प्रक्रियाएँ तेज होती हैं और आम लोग बिना देरी के न्याय प्राप्त कर लेते हैं। लोक अदालतों के संचालन में स्पष्ट प्रावधान हैं जो इन्हें केवल विवाद समाधान के लिए समझौते पर केन्द्रित करते हैं, और इसीलिए इन अदालतों का मुख्य कार्य विवादों के समाधान पर आधारित होता है, न कि गुण-दोष के आधार पर आदेश देना।
विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम की धारा 19(5) के अनुसार लोक अदालत को निम्नलिखित अधिकारिता प्राप्त है-लोक अदालत के क्षेत्र के न्यायालय में लम्बित प्रकरण, अथवा
ऐसे प्रकरण जो लोक अदालत के क्षेत्रीय न्यायालय में आते हों, लेकिन उनके लिए वाद संस्थित न किया गया हो।
परन्तु लोक अदालत को ऐसे किसी मामले या वाद पर अधिकारिता प्राप्त नहीं है जिसमें कोई अशमनीय अपराध किया गया हो। ऐसे प्रकरण जो न्यायालय में लम्बित पड़े हों, पक्षकारों द्वारा न्यायालय की अनुज्ञा के बिना लोक अदालत में नहीं लाये जा सकते।
धारा 20(1) यदि न्यायालय में लम्बित किसी वाद का पक्षकार यह चाहता है कि उसके प्रकरण का निपटारा लोक अदालत के माध्यम से हो, तथा उसका विरोधी पक्षकार इसके लिए सहमत हो, तो उस दशा में न्यायालय की यह संतुष्टि हो जाने पर कि मामले को लोक अदालत् द्वारा शीघ्र निपटाए जाने की सम्भावना है, तो लोक अदालत उस प्रकरण का संज्ञान ले सकेगी तथा सम्बन्धित न्यायालय उस प्रकरण को लोक अदालत में भेजने के पूर्व न्यायालय उभय पक्षों को सुनवाई का समुचित अवसर देगा।
लोक अदालत को सिविल प्रक्रिया संहिता, १९०८ के तहत सिविल कार्यवाही की शक्ति होगी। दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 195, और के अध्याय 6 के प्रयोजन हेतु की कार्यवाही सिविल कार्यवाही होगी। भारतीय दण्ड संहिता की धारा 193ए, 219 - 228 के तहत की गई कार्यवाही न्यायिक कार्यवाही मानी जाएगी।
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