सीता ने इस मंदिर में लव और कुश का मुंडन संस्कार कराया था
तपेश्वरी देवी मंदिर का इतिहास त्रेता युग रामायण काल का है।
कानपुर 30 मार्च 2025
29 मार्च 2025, कानपुर नवरात्रि हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। यह पर्व हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवमी तिथि तक मनाया जाता है। यह विशेष अवसर इस वर्ष 30 मार्च 2025 को शुरू हो रहा है और 7 अप्रैल 2025 को समाप्त होगा। इस दौरान मंदिरों में विशेष तैयारियाँ की जा रही हैं, जिसमें श्रद्धालुओं के लिए पूजा सामग्री और अन्य वस्त्रों की बिक्री की जा रही है।
कानपुर के प्रसिद्ध तपेश्वरी मंदिर में इस नवरात्रि पर 500 श्रद्धालु मिलकर अखंड ज्योति जलाएंगे। श्रद्धालु मां की कृपा पाने के निये पूजा अर्चना के विभिन्न विशेष उपाय करते है ।
कलश स्थापना का मुहूर्त
चैत के नवरात्रि का कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 30 मार्च 2025 को सुबह 06:13 से 10:21 बजे तक रहेगा। इसके अलावा, अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12:01 से 12:50 बजे तक होगा। यह अवसर विशेष रूप से मां दुर्गा का आह्वान करने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है。
पूजा विधि
स्थान की तैयारी: पूजास्थल को शुद्ध करें और गंगाजल से पवित्र करें।
कलश की स्थापना: मिट्टी या पीतल के कलश में जल भरें, उसमें जौ, सुपारी, और सिक्का डालें। इसके ऊपर आम के पत्ते रखें और नारियल रखकर लाल कपड़े से लपेटें।
मां दुर्गा का आह्वान: मां दुर्गा की आराधना के साथ मंत्रों का जाप करें। पूजा के अंत में आरती करनी चाहिए।
विशेष संयोग
इस वर्ष चैत्र नवरात्रि में अमृत सिद्धि और सर्वार्थ सिद्धि योग का अद्भुत संयोग बनने जा रहा है, जिससे इस पर्व का महत्व और भी बढ़ रहा है। मां दुर्गा की पूजा इस संयोग के दौरान करने से भक्तों को विशेष फल की प्राप्ति होगी。
इस दौरान श्रद्धालुओं को व्यापक तैयारियों के साथ देवी दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होगा, और अपने कल्याण के लिए उनके द्वारा की गई भक्ति फलित होगी।
कानपुर में बिरहाना रोड पटकापुर में स्थित प्राचीन मंदिरों में से एकतपेश्वरी देवी मंदिर का इतिहास त्रेता युग रामायण काल का है। यह माता सीता को समर्पित है और मान्यता है कि माता सीता ने इस मंदिर में लव और कुश का मुंडन संस्कार कराया था। पुजारी पं. शिव मंगल बताते हैं कि इस मंदिर की मान्यता सिद्धपीठ के रूप में है। उन्होंने बताया कि जब लंका पर विजय प्राप्त कर प्रभु श्रीराम वनवास से लौटे तो अयोध्यावासी माता सीता के ही चरित्र पर सवाल उठाने लगे।
इस पर भगवान राम ने सीता को त्याग दिया था। इसके बाद लक्ष्मण माता सीता को बिठूर स्थित वाल्मीकि जी के आश्रम में छोड़ आए थे। कहा जाता है कि माता सीता के तप से ही तपेश्वरी माता प्रकट हुईं थीं। इसके बाद यहां पर एक छोटी मठिया की स्थापना की गई थी। तब पुत्तू लाल इस मंदिर की रखवाली किया करते थे।
उनके निधन के बाद उनके बेटे मन्नू लाल ने इस मंदिर का निर्माण कराया। इसके बाद मन्नू के बड़े बेटे लक्ष्मी नारायण ने यहां शेर की मूर्ति की स्थापना कराई, जो आज भी है। उन्होंने मंदिर का सुंदरीकरण भी कराया। मान्यता है कि माता के सामने शीश झुकाने और अखंड ज्योति जलाने से मनोकामना पूरी होती है।
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