अमेरिकी रूस के दो सबसे बड़े तेल आपूर्तिकर्ताओं पर प्रतिबंधों से भारत को 2.7 अरब डॉलर का नुकसान

अमेरिकी सरकार ने 21 नवंबर की समय सीमा की निर्धारित
रूस ने भारत को भारी छूट पर तेल बेच रहा है
2023 में 36% भारतीय तेल आयात रूस से हुआ
भारतीय रिफाइनर्स पश्चिम एशिया जैसे नए स्रोतों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए विभिन्न स्रोतों की ओर बढ़ना होगा
कानपुर:23 अक्टूबर
नई दिल्ली :23 अक्टूबर: अमेरिका द्वारा रूस की दो प्रमुख तेल कंपनियों, रोसनेफ्ट पीजेएससी और लुकोइल पीजेएससी पर प्रतिबंधों के प्रति भारतीय रिफाइनर्स का जवाब स्पष्ट  है। इन प्रतिबंधों के कारण भारतीय रिफाइनर्स को स्रोतों में बदलाव करने की आवश्यकता है। अमेरिकी सरकार ने 21 नवंबर की समय सीमा निर्धारित की है, जिसके अनुसार इन कंपनियों के साथ किसी भी प्रकार के लेन-देन को समाप्त करना होगा।
रूसी तेल के प्रति भारत की निर्भरता महत्वपूर्ण है, खासकर 2022 में यूक्रेन युद्ध के बाद जब रूस ने नरेंद्र मोदी के भारत को भारी छूट पर तेल बेचना शुरू कर दिया। रिपोर्टों के अनुसार, 2023 में लगभग 36% भारतीय तेल आयात रूस से हुआ है। रिलायंस इंडस्ट्रीज रोजाना 5 लाख बैरल तेल रूस से खरीदती थी, चिंतित है कि ये प्रतिबंध उसके व्यापार मॉडल को प्रभावित कर सकते हैं।
भारतीय रिफाइनर्स अब पश्चिम एशिया जैसे नए स्रोतों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। यदि ये प्रतिबंध बने रहते हैं, तो भारत की रिफाइनरी कंपनियों को नियमित रूप से उच्च कीमतों पर तेल खरीदना पड़ सकता है, क्योंकि मिडिल ईस्ट से होने वाली खरीदारी में प्राथमिकता पाने के लिए छूट नहीं मिलती।
बढ़ते आयात बिल का सीधा असर घरेलू ईंधन की कीमतों पर पड़ेगा, जिससे पेट्रोल और डीजल की लागत में वृद्धि हो सकती है। शुक्रवार तक रिलायंस इंडस्ट्रीज ने पुष्टि की है कि वे अपने रूसी तेल की खरीद का पुनर्मूल्यांकन कर रहे हैं, और सरकार की दिशानिर्देशों के अनुसार व्यवहार करेंगे।
रूसी तेल पर अमेरिकी प्रतिबंधों का हवाला देते हुए भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए विभिन्न स्रोतों की ओर बढ़ना होगा। यह स्थिति भारतीय अर्थव्यवस्था पर कई व्यापक आर्थिक प्रभाव डाल सकती है, खासकर ईंधन की कीमतों में वृद्धि और आयात संतुलन के संदर्भ में। इसके अतिरिक्त, भारतीय रिफाइनर्स को अपने अनुपालनों को सुनिश्चित करते हुए समय के साथ अपने व्यापार प्रक्रियाओं में समायोजन करना होगा।

अमेरिकी प्रतिबंधों की पृष्ठभूमि
21 नवंबर 2025 तक रोसनेफ्ट PJSC और लुकोइल PJSC के साथ सभी लेन-देन समाप्त करने का निर्देश दिया गया है।
ये दोनों कंपनियां भारत के रूसी तेल आयात का लगभग 60% हिस्सा थीं।
भारत की प्रतिक्रिया और रणनीति
1. रिफाइनर्स का पुनर्मूल्यांकन
रिलायंस इंडस्ट्रीज और अन्य निजी रिफाइनर्स ने रूसी तेल खरीद की समीक्षा शुरू कर दी है।
सरकारी तेल कंपनियां पहले से ही मध्य एशिया, अफ्रीका और अमेरिका जैसे वैकल्पिक स्रोतों की ओर बढ़ रही हैं।
2. आयात में विविधता
भारत ने पिछले तीन वर्षों में 40 से अधिक देशों से तेल सोर्सिंग की है।
EY के एनर्जी विशेषज्ञ गौरव मोडा के अनुसार, यह विविधता भारत को मध्यम अवधि में लचीलापन दे सकती है।
3. सरकारी आकलन
भारत सरकार ने संकेत दिया है कि प्रतिबंधों का सीमित प्रभाव होगा क्योंकि अधिकांश खरीद मध्यस्थों के माध्यम से होती है, न कि सीधे प्रतिबंधित कंपनियों से।
💸 आर्थिक प्रभाव

पहलू

विवरण

आयात बिल में वृद्धि

बाजार मूल्य पर तेल खरीदने से FY25 में भारत का आयात बिल $2.7 बिलियन तक बढ़ सकता है

घरेलू ईंधन मूल्य

पेट्रोल-डीजल की कीमतों में वृद्धि की आशंका

ट्रंप प्रशासन का दबाव

भारत पर 50% शुल्क लगाया गया है, जिसमें 25% अतिरिक्त शुल्क शामिल है


📉 रूसी तेल आयात में गिरावट
सितंबर 2025 में भारत का रूसी तेल आयात 1.6 मिलियन BPD रहा, जो अगस्त से 5% कम है।
छूट में गिरावट (अगस्त में $3 → सितंबर में $2) भी एक कारण रहा।
🔍 निष्कर्ष और आगे की राह
भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा बनाए रखने के लिए स्रोतों की विविधता, अनुपालन रणनीति, और आर्थिक संतुलन पर ध्यान देना होगा।
यह संकट भारत के लिए एक अवसर भी हो सकता है—हरित ऊर्जा, क्रॉस-कंट्री विनिर्माण, और नए व्यापार समझौते की दिशा में कदम बढ़ाने का।

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