लहसुन, आलू और टमाटर की कीमतों में गिरावट से सब्जियों की नकारात्मक मुद्रास्फीति 20 माह में
भारतीय रिज़र्व बैंक संभवतः 2025 में बेंचमार्क रेपो दर में कुल 75 आधार अंकों (bps) की कटौती करेगा, जिसमें अप्रैल, जून और अक्टूबर की नीतिगत बैठकों में प्रत्येक में 25 bps की कटौती होगी। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) रिसर्च इकोरैप के अनुसार, विशेषज्ञों का मानना है कि भारत का उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मुद्रास्फीति वित्त वर्ष 2025 की चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च) में 3.9 प्रतिशत और पूरे वर्ष के लिए औसतन लगभग 4.7 प्रतिशत रहेगी।
हालांकि,वित्त वर्ष 2025-26 की ओर देखते हुए, मुद्रास्फीति 4.0 प्रतिशत और 4.2 प्रतिशत के बीच रहने की उम्मीद है, जिसमें मुख्य मुद्रास्फीति 4.2 प्रतिशत से 4.4 प्रतिशत तक है. इस प्रवृत्ति को देखते हुए, एसबीआई अनुसंधान विश्लेषकों ने इस चक्र के दौरान 75-आधार-बिंदु दर में कटौती की उम्मीद की है, अप्रैल और जून 2025 में बैक-टू-बैक कटौती की उम्मीद है। अक्टूबर 2025 में दरों में कटौती का एक और दौर आ सकता है।
उन्होंने कहा, 'इस महीने मुद्रास्फीति में नरमी और आगे बढ़ने के साथ, हम उम्मीद करते हैं कि चक्र के दौरान संचयी दर में कटौती कम से कम 75 आधार अंक हो सकती है, अगली नीति अप्रैल और जून में लगातार दरों में कटौती के साथ। अगस्त' 25 में एक अंतराल के साथ, दर में कटौती चक्र अक्टूबर'25 से फिर से शुरू हो सकता है, SBI रिसर्च इकोरैप ने कहा.
आरबीआई मौद्रिक नीति: 2025 के लिए प्रमुख अनुमान हैं कि भारत की सीपीआई मुद्रास्फीति फरवरी 2025 में सात महीने के निचले स्तर 3.6 प्रतिशत पर आ गई, जिसका मुख्य कारण खाद्य कीमतों में तेज गिरावट है। खाद्य और पेय पदार्थों की मुद्रास्फीति घटकर 3.84 प्रतिशत रह गई क्योंकि सब्जियों की कीमतों में उल्लेखनीय गिरावट आई। लहसुन, आलू और टमाटर की कीमतों में भारी गिरावट के कारण सब्जियों की मुद्रास्फीति 20 महीनों में पहली बार नकारात्मक हो गई।
आर्थिक सुस्ती से निपटने व अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक ने ब्याज दरों में कटौती की है। पूर्व के विपरीत, अब रिवर्स रेपो रेट प्रभावी रूप से बेंचमार्क दर का निर्धारण कर रही है।विगत कुछ वर्षों से भारत की आर्थिक वृद्धि दर में गिरावट दर्ज है, जिसके लिये कई कारक उत्तरदायी है; परंतु उपभोक्ता माँग में कमी प्रमुख कारक है।
ऐसी स्थिति में निवेशक नए निवेश में सावधानी बरत रहे हैं, परिणामस्वरूप बैंकों से ऋण लेने की दर (Lending) में कमी आई है। इसके अलावा, बैंकिंग क्षेत्र में गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों (Non-Performing Assets-NPAs) का बढ़ता स्तर भी एक प्रमुख कारक है, जिसके चलते बैंक उधार देने में उच्च जोखिम का अनुभव करते हैं।
इन सभी परिस्थितियों के मद्देनज़र बैंकों द्वारा रिज़र्व बैंक से नए फंड की माँग में कमी आई है। साथ ही, कोविड-19 तथा उसके चलते जारी लॉकडाउन के कारण स्थिति और भी बिगड़ गई है।
प्रभावी रूप से, बैंकिंग प्रणाली में दो महत्त्वपूर्ण कारणों से तरलता विद्यमान है। पहला, आर.बी.आई. द्वारा ब्याज दरों तथा नकद आरक्षित अनुपात जैसी अन्य नीतिगत दरों में कटौती करना, जिससे अतिरिक्त धनराशि को बैंकिंग प्रणाली में लाया जा सके; दूसरा, बैंक द्वारा विभिन्न कारणों से व्यवसायों को ऋण उपलब्ध नहीं कराया जाना।'रेपो रेट' वह दर है, जिस पर रिज़र्व बैंक लघु अवधि के लिये वाणिज्यिक बैंकों को उधार देता है। इसके विपरीत, 'रिवर्स रेपो रेट' वह दर है, जिस पर बैंक अपने अतिरिक्त धन को आर.बी.आई. के पास जमा कराते हैं।
सामान्य परिस्थितियों में, अर्थव्यवस्था में रेपो रेट बेंचमार्क ब्याज दर होती है, क्योंकि यह ब्याज की निम्नतम दर है, जिस पर धन उधार लिया जा सकता है। इस कारण से, अर्थव्यवस्था में यह दर सभी अन्य ब्याज दरों के लिये प्राथमिक स्तर प्रदान करती है। अतः आर.बी.आई. सामान्य तौर पर ब्याज दरों में परिवर्तन हेतु मुख्य साधन के रूप में रेपो रेट का उपयोग करता है।वाणिज्यिक बैंकों द्वारा व्यवसायों को प्राथमिक स्तर पर ऋण मुहैया कराने के दो स्रोत है। एक, बैंकों में सामान्य व्यक्तियों द्वारा बचत के रूप में जमा की गई धनराशि; दूसरा, 'रेपो रेट'।
बैंकिंग प्रणाली में इस समय पर्याप्त मात्रा में तरलता है। इसका तात्पर्य है, बैंक मार्च व अप्रैल के प्रथम 15 दिनों में रेपो (उधार) की जगह केवल रिवर्स रेपो (रिज़र्व बैंक के पास जमा फंड) का उपयोग कर रहे हैं। 15 अप्रैल, 2020 तक रिज़र्व बैंक के पास बैंकों की लगभग 7 लाख करोड़ रुपए धनराशि जमा है। रिवर्स रेपो रेट अर्थव्यवस्था में सर्वाधिक प्रभावशाली दर बन गई है। ऐसी स्थिति को पहचानकर तथा वर्तमान आर्थिक परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए, केंद्रीय बैंक ने रेपो रेट की तुलना में रिवर्स रेपो रेट में अधिक कटौती की है।
0 Comments