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महंत राजू दास द्वारा नेताजी मुलायम सिंह यादव पर अपमानजनक टिप्पणियां निन्दनीय कठोर कार्रवाई आपेक्षित

 महंत राजू दास द्वारा नेताजी मुलायम सिंह यादव पर अपमानजनक टिप्पणियां निन्दनीय

नेताजी मुलायम सिंह यादव का योगदान भारतीय राजनीति में अत्यधिक महत्वपूर्ण
जो शब्दों से प्रेम और समझदारी का भाव जगाता है वह सच्चा महंत
कठोर कार्रवाई आपेक्षित


कानपुर 21 जनवरी 2025
प्रयागराज 20 जनवरी 2025 राजू दास द्वारा विवादित अपमानजनक टिप्पणियां कर नेताजी मुलायम सिंह यादव का अपमान किया है, जो राजू दास के व्यक्तिगत आचरण व शिष्टाचार का मामला है,समाज में नेताजी मुलायम सिंह यादव प्रति सम्मान और राजनीतिक शिष्टाचार का प्रश्न है। नेताजी मुलायम सिंह यादव का योगदान भारतीय राजनीति में अत्यधिक महत्वपूर्ण रहा है वह समाज के कमजोर वर्गों के प्रति अपनी निष्ठा के लिए जाने जाते हैं।
किसी जनप्रतिनिधि या नेताओं के प्रति अपमानजनक टिप्पणियां केवल उनकी व्यक्तिगत गरिमा को नहीं, बल्कि उनके समर्थकों और अनुयायियों की भावनाओं को भी आहत करती हैं। नेताजी मुलायम सिंह यादव ने अपने कार्यों के माध्यम से समाज के विभिन्न वर्गों के प्रति पर ध्यान केंद्रित किया, और उन्हें सम्मान के साथ याद किया जाता है। ऐसे में उनका अपमान को किसी भी स्थिति में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
सामाजिक समरसता और शांति के लिए सार्वजनिक विचारों में संयम और नैतिकता का पालन आवश्यक है।एक व्यक्ति या समूह किसी नेता का अपमान करता है तो यह व्यक्तिगत विवाद सहित सामाजिक तनाव और विभाजन को बढ़ावा देता है।
महंत राजू दास के खिलाफ कठोर कार्रवाई की की आवश्यकता है। यह व्यक्तिगत जिम्मेदारी के अतिरिक्त समाज के लिए एक सशक्त संदेश भी है कि हम नेताओं और उनकी विरासत का सम्मान करते हैं। सम्पन्नता और विकास के लिये समाज में ऐसे मामलों को गंभीरता से लेने की आवश्यकजरूरत है।
हम सभी एकजुट हो अपमानों के खिलाफ खड़े हों और इसे रोकने के लिए ठोस कदम उठाएं। भारतीय लोकतंत्र की जड़ें समाज में सद्भाव और सम्मान में निहित हैं, और इनका पालन करना सभी नागरिकों की जिम्मेदारी है।
भारतीय समाज में संतों की एक विशिष्ट भूमिका है। उन्हें ज्ञान का आधार, मार्गदर्शन का स्तंभ और मानवता के कल्याण के लिए समर्पित व्यक्तित्व के रूप में देखा जाता है। यह आवश्यक नहीं है कि जो कोई संत का भेष धारण कर ले, वह वास्तव में संत हो। संतत्व एक आंतरिक गुण है, जो आडंबर से नहीं प्रदर्शित किया जा सकता। तथाकथित संतों की गतिविधियाँ और उनके द्वारा बार-बार बयान किए जाने वाले अभद्र शब्दों पर विचार करना आवश्यक है।
तथाकथित संतों की पहचान उनके शब्दों में विद्यमान नफरत और अभद्रता। विशेष रूप से जब वे अपने विरोधियों या जिन लोगों के प्रति उन्हें घृणा है, उनके विषय में उल्टे सीधे व्यक्तिगत या राजनीतिक द्वेष से प्रेरित अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करना उनकी मानसिकता को दर्शाता है।
संतत्व की प्रतिष्ठा महत्वपूर्ण सम्मान और प्रेम है। इस आधारभूत सिद्धांत को भुला कर प्रतिष्ठा का दुरुपयोग करता है, तो वह अपने लिए व समाज के लिए खतरा बन जाता है। ऐसे तत्व समाज में विभाजन कर शांति तथा सद्भाव को नष्ट करते हैं। संत होने का बहाना बनाकर समाज में नकारात्मकता फैलाने की कोशिश हैं।
संत का भेष धारण करने से कोई संत नहीं बन जाता। संतत्व आंतरिक गुणवत्ता और ईमानदारी का परिणाम है, जिसे व्यक्तित्व की गहराइयों से बाहर आना चाहिए। हमें पहचान करनी चाहिए जो वास्तव में मानवता के उत्थान के प्रति समर्पित हैं, और जो समाज में प्रेम, शांति और एकता के संदेश को फैलाते हैं। हमें तथाकथित संतों की वास्तविकता को समझ उनकी नकारात्मकता के प्रभाव से बच सच्चे संतों के आदर्शों की ओर प्रेरित होना चाहिये ।
शब्दों की शक्ति अपार है। एक सच्चा महंत वह है, जो अपने शब्दों से प्रेम और समझदारी का भाव जगाता है, न कि नफरत और द्वेष का। ऐसे ही विचार हमारे समाज में शांति और सहिष्णुता को बढ़ावा दे सकते हैं।

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