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भावपूर्ण श्रद्धांजलि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने 21 अक्टूबर 1943 को स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार जर्मनी, जापान, फिलीपीन्स, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड सहित ग्यारह देशों की मान्यता से बनायी थी ।

 1944 में आज़ाद हिंद फौज ने र कुछ भारतीय क्षेत्रों को अंग्रेजों से आजाद  कराया

6 जुलाई 1944 को रंगून रेडियो स्टेशन से प्रसारण में महात्मा गांधी को संबोधन
सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु का विवाद आज भी है। 
18 अगस्त को जापान में उनका शहीद दिवस मनाया जाता है। 
 नेताजी की मृत्यु 1945 में नहीं हुई थी वह रूस में नजरबंद थे। 
"तुम मुझे खून दो, और मैं तुम्हें आजादी दूंगा" का स्मरण भावपूर्ण श्रद्धांजलि है।



कानपुर 23 जनवरी 2025 
22 जनवरी 2025 नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को कटक, उड़ीसा में हुआ था।  भारत के ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय  एक भारतीय क्रांतिकारी थे ।
सुभाष चन्द्र बोस, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक अविस्मरणीय नेता और प्रेरक व्यक्तित्व थे, बोस का जीवन एक अद्वितीय संघर्ष, साहस और बलिदान की कहानी है, जो उन्हें अन्य स्वतंत्रता सेनानियों से अलग बनाती है। उनकी राजनीतिक रणनीतियों, विचारों और सिद्धांतों ने भारतीय जनता में स्वतंत्रता के प्रति जागरूकता का संचार किया और उन्हें एक नई दिशा देने का कार्य किया।
सुभाष चन्द्र बोस की प्रारंभिक शिक्षा कलकत्ता और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में हुई। उन्होंने शैक्षणिक करियर को छोड़कर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ने का निर्णय लिया। उनकी सोच तत्कालीन राजनीतिक परिदृश्य में एक असाधारण नेता के रूप में स्थापित करती है। बोस के अनुसार भारत की स्वतंत्रता के लिए क्रांतिकारी गतिविधियां आवश्यक है और अंग्रेज़ों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष कीं दिशा में अपनी गतिविधियां आरंभ कीं जबकि महात्मा गांधी और नेहरू जैसे नेता शांतिपूर्ण आंदोलन पर जोर देते थे।
सुभाष चन्द्र बोस ने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, जब भारत में स्वतंत्रता की आग तेजी से भड़क रही थी 1940 के दशक में आज़ाद हिन्द फ़ौज की स्थापना की । बोस ने जापान के सहयोग से एक सशस्त्र सेना का गठन किया। आज़ाद हिन्द फ़ौज का उद्देश्य भारतीय सैनिकों को एकजुट करना और ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक सशस्त्र आंदोलन चलाना था। बोस ने स्वतंत्रता की जल्द प्राप्ति का संकेत "करे हम पहले" का नारा दिया, उनका यह कदम एक साहसी और निर्णायक था, जिसने युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम में भागीदार बनने के लिए प्रेरित किया।
बोस का यह दृष्टिकोण  सैन्य क्रांति के साथ भारतीय संस्कृति, भारतीयता और राष्ट्रीयता को भी पुनर्जीवित करने का प्रयास था। उन्होंने 1943 में सिंगापुर में 'आजाद हिन्द सरकार' की स्थापना कर वैकल्पिक सरकार के रूप में कार्य करना आरम्भ किया था और एक मजबूत मोर्चा निर्माण कर भारतीय स्वतंत्रता की दिशा में अग्रसर हुये  । आज़ाद हिन्द सरकार ने सशस्त्र संघर्ष का समर्थन कर भारतीयों को अपने अधिकारों की पहचान करने और मातृभूमि के लिये मर मिटने का संदेश दिया।
सुभाष चन्द्र बोस की सोच और कार्यों का प्रभाव भारत की सीमाओं से परे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित है । उन्होंने एक वैश्विक दृष्टिकोण अपनाया और अन्य देशों के स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरणा दी। बोस के अनुसार स्वतंत्रता एक राजनीतिक आवश्यकता व मानवता का मूल अधिकार है। उन्होंने अन्य देशों के साथ मिलकर ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ गठबंधनों की स्थापना कर संयुक्त मोर्चा बनाया।
भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन जापानी सरकार को भारत के मित्र के रूप में नहीं देखता था। इसके विपरीत, यह आंदोलन उन देशों और नागरिकों के प्रति सहानुभूति रखता था जो जापानी विस्तारवाद और आक्रमण का शिकार हो रहे थे। लेकिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने जापानी सहायता से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को जोड कर ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने के मुख्य उद्देश्य आजाद हिंद फौज की स्थापना की थी।
नेताजी का करिश्माई नेतृत्व देश के अंदर और बाहरी भारतीयों को आकर्षित करने में सफल रहा। आजाद हिंद फौज का प्रसिद्ध नारा "दिल्ली चलो" था, जिसने हर भारतीय में आज़ादी के प्रति जोश भर दिया। फौज का अभिवादन "जय हिंद" भी बहुत लोकप्रिय हुआ। इस आंदोलन में दक्षिण पूर्व एशिया में फैले भारतीयों ने नेताजी के नेतृत्व में विभिन्न जातियों और क्षेत्रों से एकजुट होकर भाग लिया।
सुभाष चन्द्र बोस का अदम्य इच्छाशक्ति समर्पण का प्रतीक त्याग और बलिदान ने उन्हें भारतीय इतिहास में अमर बना दिया। उनकी मृत्यु 18 अगस्त 1945 को विमान क्रैश में हुई, लेकिन उनके आदर्श आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं। उनका अंतिम संदेश 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा' आज भी भारतीयों के दिलों में गूंजता है।
सुभाष चन्द्र बोस का योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उनकी नेतृत्व क्षमता, साहसिकता और दूरदर्शिता ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई ऊर्जा और दिशा दी। वे भारतीय जनमानस में स्वतंत्रता की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा का संचार करने वाले एक नेता व विचारक थे । सुभाष चन्द्र बोस का जीवन सभी के लिए एक प्रेरणा स्रोत है और सिखाता है कि सफलता प्राप्ति के लिए साहस, बलिदान और संकल्प की आवश्यकता होती है।
21 अक्टूबर 1943 को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने आज़ाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति के रूप में स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार की स्थापना की थी। इस सरकार को जर्मनी, जापान, फिलीपीन्स, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड सहित कुल ग्यारह देशों ने मान्यता दी। जापान ने अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह को अस्थायी सरकार को सौंप दिए। सुभाष चन्द्र बोस ने इन द्वीपों में जाकर उनका नया नामकरण भी किया।
1944 में आज़ाद हिंद फौज ने अंग्रेजों के खिलाफ दूसरा आक्रमण किया और कुछ भारतीय क्षेत्रों को अंग्रेजों से आजाद करा लिया। इसी समय 4 अप्रैल 1944 से 22 जून 1944 तककोहिमा का युद्ध, लड़ा गया। इस युद्ध में  जापानी सेना को पीछे हटना पड़ा, लेकिन यह युद्ध भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का महत्वपूर्ण अध्याय साबित हुआ।
6 जुलाई 1944 को, नेताजी ने रंगून रेडियो स्टेशन से एक प्रसारण में महात्मा गांधी को संबोधित किया। उन्होंने इस निर्णायक युद्ध में सफलता के लिए गांधीजी का आशीर्वाद और शुभकामनाएँ मांगी थी।
सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु का विवाद आज भी है। 18 अगस्त को जापान में उनका शहीद दिवस मनाया जाता है। उनके परिवार के सदस्यों के अनुसार नेताजी की मृत्यु 1945 में नहीं हुई थी वह रूस में नजरबंद थे। यह स्पष्ट होना चाहिये कि उनकी मौत कब और कैसे हुयी भारत सरकार ने उनसे जुड़े दस्तावेज अब तक सार्वजनिक क्यों नहीं किए।
सुभाष चंद्र बोस के जीवन का यह पहलू आज भी शोध और गहन अध्ययन का विषय बना हुआ है।
"तुम मुझे खून दो, और मैं तुम्हें आजादी दूंगा" का स्मरण बोस की तत्परता और स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति पूर्ण समर्पण के उनके बलिदान के लिए है। भावपूर्ण श्रद्धांजलि है।

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